September 21, 2024
कुंडली में भाव की महत्वता : ज्योतिष सीखे : अध्याय 1
ज्योतिष सीखे : अध्याय 1
कुंडली में भाव की महत्वता : ज्योतिष में कुंडली को समझने व सटीक फल की भविष्यवाणी करने हेतु भावो की सटीक जानकारी व उनके कारक विषयो के बारे में गहराई से जानना आवश्यक है।
 |
Kundali Bhaav |
कुंडली में कूल 12 भाव होते है। इन्हे घर भी कहा जाता है जिनको ऊपर दिखयी गयी कुंडली के हिसाब से पढ़ते है। जिस खाने में 1 लिखा है वो कुंडली का पहला भाव है , ऐसे ही जिस खाने में 2 लिखा है वो कुंडली का दूसरा भाव है। इसी तरीके से बाकी 3 से लेकर 12 भाव है। कुंडली का पहला भाव लग्न भाव कहलाता है। जीवन की रूपरेखा के लिए इस भाव की सबसे अधिक महत्वता है।
कुंडली में प्रत्येक भाव के अपने नाम और कारक विषय है जिन्हे हम आने वाले भाग में विस्तार से पढ़ेंगे।
किस भाव से शरीर के किस अंग को देखा जाता है ?
जब हम ये देखना चाहते है की स्वास्थ्य के मामले में शरीर के किस भाग में पीड़ा हो सकती है ,तब हमे ये पता होना चाहिए की कोनसा भाव शरीर के किस अंग को दर्शाता है।
 |
Body Parts in Kundali |
इस कुंडली में प्रत्येक भाव में मानव शरीर का कोनसा अंग देखा जाता है , ये दिखाया गया है।
जब हम Health की भविष्यवाणी करते है की कुंडली का कोनसा भाव पीड़ित है , जो भाव कुंडली का पीड़ित होता है उसी अंग से सबंधित जातक को समस्या हो सकती है।
उदहारण के लिए यदि कुंडली का दूसरा भाव पीड़ित है ( पीड़ित होना अर्थात किसी क्रूर ग्रह की इस भाव में उपस्थिति या अशुभ ग्रह की दृष्टि होना ) तो दूसरे भाव से सम्बंधित अंगो में जैसे चेहरे पर , दांतो में , नेत्र में समस्या हो सकती है।
भावो के अन्य विचारणीय विषय :
स्वास्थ्य व शरीर के अंगो के अतिरिक्त , भाव से अन्य विषय तथा कारक देखे जाते है जैसे :
लग्न भाव :
संपूर्ण जीवन की रूपरेखा , देह , रंग, रूप , स्वास्थय , मस्तिष्क आदि का विचार कुंडली के पहले भाव से किया जाता है। ये भाव आत्म भाव है जो व्यक्ति के जीवन की मोटा मोती ढांचा तैयार करने में मदद करता है। इस भाव का कारक सूर्य है जो व्यक्ति की आत्मा का कारक है।
दूसरा भाव : धन की बचत , प्राथमिक शिक्षा, भोजन , दांया नेत्र , मुख , वाणी तथा परिवार जैसे कारक विषय के बारे में इस भाव को देखा जाता है। इस भाव का कारक बृहस्पति है। मंगल इस भाव में निष्फल माना जाता है।
तीसरा भाव : छाती , दांया कान , साहस , पराक्रम , वीर्य , कम्युनिकेशन, भाई बहिन , writing skill , छोटी यात्रा जैसे विषयो का विचार इस भाव से किया जाता है। इस भाव का कारक मंगल है।
चौथा भाव : इस भाव को सुख भाव कहा जाता है। इस भाव से माध्यमिक शिक्षा को देखते है। साथ ही इस भाव से माता , वाहन , अचल सम्पति , मानसिक सुकून , property , हृदय , राजा से अनुग्रह , घर अपना या किराये का , जैसे भावो को पढ़ा जाता है। इस भाव का कारक बुध और चन्द्रमा है परन्तु यदि इस भाव में बुध हो तो वो निष्फल होता है।
पांचवा भाव : इस भाव को संतान भाव कहा जाता है। संतान से सम्बन्धी विषयो की जानकारी इस भाव से तथा इस भाव का जिन भाव से सम्बन्ध बनता है कुंडली में उसके आधार पर प्राप्त की जाती है। इसके अतिरिक्त इसी भाव से प्रोफेशनल education , बुद्धि की तीक्ष्णता , देव भक्ति , पुण्यकर्म , गुप्ता मंत्रण , उदर , पेट , विवेचन शक्ति जैसे विषयो का विचार किया जाता है। इस भाव का कारक बृहस्पति है परन्तु इस भाव में निष्फल माना जाता है।
छठा भाव : ये भाव शत्रु भाव है। इस भाव से रोग , कर्जा , शत्रु का मुख्यत विचार किया जाता है। साथ ही माता के घर के रिश्तेदार जैसे मामा , मौसी , इत्यादि , घाव , चोरी , विघ्न , कलेश , नाभि , उदार भाग आदि का विचार भी इसी से किया जाता है। शनि और मंगल इस भाव के कारक माने जाते है और शुक्र अकेला इस भाव में निष्फल माना जाता है।
सातवा भाव : ये व्यक्ति का जाय भाव है। स्त्री, पति , विवाह , भाई के संतान , यात्रा , साझेदारी , व्यापार , नष्ट धन की प्राप्ति , ज्ञान , मूत्राशय , आदि का विचार यहाँ से किया जाता है। शुक्र इस भाव का कारक है और शनि इस भाव में निष्फल मान लिया जाता है।
आठवा भाव : ये भाव निधन भाव है। इस भाव से आयु , जीवन , मरण , किस कारण से मृत्यु होगी , मृत्यु का स्थान , जय विजय , जननांग इत्यादि का विचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त अगर ये भाव कुंडली में मजबूत है तो करियर में रिसर्च एंड डेवलपमेंट से जुड़े कार्य , शोध कार्य , डॉक्टर , वैज्ञानिक जैसे करियर की जानकारी भी इसी भाव से प्राप्त होती है। ज्योतिष , या occult साइंस जैसे विषयो का अध्यन भी इसी भाव से किया जाता है। शनि इस भाव का कारक है।
नौवा भाव : भाग्य भाव कहलाता है ये। मनुष्य का भाग्य उसका कितना साथ देगा ये इसी भाव से तय होता है। इसके अतिरिक्त इस भाव से व्यक्ति का धार्मिक व्यवहार , धार्मिक अनुष्ठान , तपस्या , गुरुजन , पिता , तीर्थ यात्रा , कानून , सम्पति , नेतृत्व और जंघा जैसे विषय यहाँ से विचार किये जाते है।
इस भाव का कारक सूर्य और बृहस्पति है।
दसवा भाव : इसे कर्म भाव कहते है। व्यक्ति का व्यवसाय , कार्य में प्रतिष्ठा , मान सामान , समृद्धि , कार्य क्षेत्र में सफलता ,विज्ञानं , उच्च पद, निंदा , घुटना का विचार किया जाता है। बृहस्पति , बुध , शनि और सूर्य इस भाव के कारक है। व्यक्ति क्या कार्य करेगा या उसे क्या करना चाहिए ये दसवे भाव का सम्बन्ध किस ग्रह या किस भाव से बन रहा है इसी से मुख्यत निर्धार्रित होता है।
ग्यारवा भाव : ये आय भाव कहलाता है। इस भाव से व्यक्ति की आय( धन का अर्जन ) , इच्छापूर्ति , महत्वकाँक्षा , बड़े भाई बहिन , मित्र , सामाजिक व्यवहार , इस भाव से देखा जाता है , इस भाव का कारक बृहस्पति है।
बाहरवा भाव : व्ययभाव कहलाता है। इस भाव से खर्च , नुक्सान , विदेश यात्रा , दानशीलता , जेल , राजदंड , पतन का विचार इस भाव से किया जाता है।
Related