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October 8, 2024

जानिए अपने जीवनसाथी के बारे में: ज्योतिष के दृष्टिकोण से

 

जानिए अपने जीवनसाथी के बारे में: ज्योतिष के दृष्टिकोण से

              

          अभी तक विवाह कुंडली की इस श्रृंखला में हम दो ब्लॉग पढ़ चुके है जिनमे हमने जाना की विवाह योग कुंडली में कैसे देखना होता है तथा विवाह का समय कैसे निर्धारित करते है।  

अब ये तथ्य तो सर्वसम्मत है व ज्ञात  है की यदि व्यक्ति को एक गुणवत्ता और अच्छी समझ वाला जीवन साथी मिल जाए तो उसका गृहस्थ जीवन स्वर्ग सामान होता है अन्यथा परिणाम विपरीत होता है।  आज इस ब्लॉग में हम यही जानेंगे की ग्रहो की स्तिथि के अनुसार जातक जा जीवन साथी कैसा होगा।  

1 . विवाह के लिए सप्तम स्थान का अपना महत्व है ये अभी तक हम जान चुके है।  लग्न से सप्तम भाव , चंद्र से सप्तम भाव और सप्तम से भी सप्तम भाव तथा दाम्पत्य जीवन का कारक यानी शुक्र ग्रह , इन सब से स्त्री कामातुरता , स्त्री सम्भोग की शक्ति का बोध होता है।  

साथ ही इन सभी भावो के स्वामी की स्तिथि पर भी नजर डालना आवश्यक है।  यदि ये सभी शुभ हो तो व्यक्ति को एक गुणवान साथी प्राप्त होता है। 

यदि हम उदाहरण कुंडली पर नजर डाले तो लग्न से सप्तम भाव में कोई ग्रह नहीं है। परन्तु भाव पर गुरु और बुध की पूर्ण दृष्टि है।  यह एक अच्छा बिंदु है परन्तु साथ ही इस भाव पर केतु की भी दृष्टि है।  सप्तमेश शनि है जो है तो अष्टम भाव में परन्तु अपने मूल त्रिकोण में।  सप्तमेश पर मंगल की दृष्टि है।  

Shri Rama Jyotish Peeth
Example Kundali 

अब इन बिन्दुओ को विश्लेषित करे तो :

– सप्तम भाव पर बुध , और गुरु की पूर्ण दृष्टि है ( ✓)

– केतु की दृष्टि है (x)

– सप्तमेश स्वगृह है (✓)

– अष्टम भाव में है साथ में मंगल की दृष्टि है (x)

इस प्रकार विश्लेषण करने पर गुरु की दृष्टि के कारण इस जातक की पत्नी निश्चित ही गुणवान  और धर्म में आस्था रखने वाली होगी , पति के सुख और दुःख पर ध्यान देती होगी परन्तु मंगल की दृष्टि और शनि के सप्तमेश होने के कारण अष्टम भाव में अधिक क्रोध करने वाली पति के साथ तर्क करने वाली होगी। 

इसी प्रकार चंद्र से सप्तम भाव देखने पर , सप्तम भाव में कोई  ग्रह नहीं है , भाव शनि और शुक्र के मध्य है।  सप्तम भाव पर गुरु और चंद्र की पूर्ण दृष्टि है साथी ही राहु की भी दृष्टि है।  

भाव का स्वामी गुरु है जो शुभ ग्रह चन्द्रमा के साथ है परन्तु इस पर केतु की दृष्टि है। 

इन सभी बिन्दुओ की भी विश्लेषित करने पर :

– सप्तम भाव पर गुरु और चंद्र की दृष्टि है ((✓)

– भावेश चंद्र लग्न में चंद्र के साथ है (✓)

–  भाव पर राहु की दृष्टि 

– भावेश पर केतु की दृष्टि 

फिर से चंद्र भाव से देखने पर भी मिश्रित परिणाम प्राप्त होते है।  स्त्री गुणवान होगी परन्तु राहु ोे केतु के प्रभाव से दोनों पति पत्नी में कुछ मिसकम्युनिकेशन भी होगा विशेष तौर पर राहु और केतु की दशा व अन्तर्दशा में परन्तु शुभता प्राप्त होने से ये रिश्ता निसंदेह चलेगा और दोनों जीवनसाथी एक दूसरे का सुख दुःख में साथ देंगे। 

अन्य कतिपय योग :

1 . यदि शुक्र चर राशि में , गुरु सप्तम भाव में हो और लग्नेश बली हो तो स्त्री सुन्दर , गुणवान , पतिव्रता और प्रेम करने वाली होती है। 
2 . सप्तमेश बृहस्पति के साथ हो या उस पर बृहस्पति की दृष्टि है तो भी स्त्री गुणवान होती है। 
3 . बृहस्पति शुक्र के साथ हो, या बृहस्पति की दृष्टि शुक्र पर हो तो भी जीवनसाथी गुणसम्पन्न होता है और जातक के सुख दुःख में साथ देता है।  
4 . सप्तमेश बृहस्पति हो और शुक्र तथा बुध की पूर्ण दृष्टि हो। 
5 . बृहपति सप्तमस्थ हो और उसे कोई अशुभता प्राप्त न हो तो भी स्त्री पतिव्रता , सुंदरी और चित्त को आकर्षित करने वाली होती है 
6 . यदि सप्तमेश केंद्र में बैठा हो और शुभ ग्रह के साथ हो , या शुभ राशि में हो या शुभ नवांश में हो तो भी स्त्री मन को भाने वाली  होती ह
7 . सप्तमेश शुभ ग्रह के साथ या दृश्य हो तो जातक का स्वभाव विनीत और नम्र होगा और उसकी स्त्री प्रेम करने वाली होगी 
8 . सप्तम भाव पर गुरु की पूर्ण दृष्टि हो तो स्त्री दयालु , सुंदरी , और सुचरित्र वाली होती है। 
9 . इसके विपरीत सप्तम भाव पर पाप ग्रह की दृष्टि होने पर स्त्री झगड़ालू , और दुःख देने बाली होती है।  
10 . यदि लग्नाधिपति सप्तम भाव में हो और सप्तम का स्वामी पंचम में हो तो ऐसा जातक अपनी स्त्री के वशीभूत चलता है 
11 . लग्न में राहु या केतु के रहने स्त्री जातक के वशीभूत रहती है 
12 . यदि सप्तम भाव का स्वामी सूर्य हो और शुभ ग्रह के साथ हो , या शुभ ग्रह की दृष्टि हो , उच्च का हो , शुभ राशि में हो तो स्त्री आज्ञाकारिणी होती है , सेवा करने वाली  होती है 
13. यदि सप्तम भाव का स्वामी चंद्र हो और पाप ग्रह के साथ हो या पाप ग्रह की दृष्टि हो , पाप राशिगत हो तो ऐसे में जातक की पत्नी का मन कठोर होता है. उसका स्वभाव भी कठोर हो जाता है।  इसके विपरीत यदि चन्द्रमा को शुभता प्राप्त हो तो स्त्री मर्यादित और दानशील होती है। 
14 . सप्तमेश यदि मंगल हो और अशुभता प्राप्त हो ( नीच का हो , शत्रु राशि में हो , पाप ग्रह  के साथ हो या दृष्टि हो )  तो जातक की पत्नी कुचरित्र हो सकती है। 
15 . परन्तु यदि इसके विपरीत मंगल उच्चा का हो , स्वगृही हो या उसे शुभता प्राप्त हो तो मंगल के कारण स्त्री का स्वभाव निर्दयी अवश्य होगा परन्तु अपने पति की आज्ञा का पालन करने वाली होगी , प्रेम करती होगी। 
16 . सप्तमेश बुध हो और उसे अशुभता प्राप्त हो तो पत्नी पति की जान लेने वाली होती है या अत्यधिक दुःख और कष्ट पहुँचाती है।  शुभता होने से फल विपरीत होता है। 
17 . गुरु सप्तमेश हो और शुभ हो तो स्त्री धार्मिक , उत्तम गन और दानशील होती है। 
18 . शुक्र सप्तमेश हो और अशुभता प्राप्त हो तो स्त्री कुमार्गी और कठोर हो सकती है परन्तु शुभता प्राप्त हो तो स्त्री अधिक बोलने वाली , पुत्रवती , और शुभ चरित्र की होती है। 
19 . शनि सप्तमेश हो और अशुभता प्राप्त हो तो स्त्री दुःख देने वाली , क्रूर और सख्त स्वभाव की होती है। 
इसके विपरीत यदि शनि पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो या शुभता प्राप्त हो तो स्त्री विनीत , उत्तम प्रकृति की होती है 
20 . सप्तम भाव में राहु या केतु हो तथा पाप ग्रह के दृष्टि या युति हो तो स्त्री ओछे ख्याल वाली होती है।  इस पर यदि राहु और केतु क्रूर नवांश में भी हो तो स्त्री अपने पति पर विष प्रयोग कर सकती है।  खुद को अपयश का कारण बनती है और दुःख रहती है। 

ऊपर उदाहरण कुंडली में जातक का सप्तमेश शनि है जो कुम्भ राशि में मूल त्रिकोण में स्थित है और मंगल की पूर्ण दृष्टि इस पर है।  साथ ही नवांश कुंडली में भी शनि शत्रु के नवांश में है। 

इस कारणवश इस जातक की पत्नी पति की परम अनुयायी न होगी , मंगल की दृष्टि के कारण अधिक उत्तेजित होगी , क्रोधी होगी , झगड़ा करने वाली होगी परन्तु दुष्टा न होगी।  शनि के अपने घर में होने के कारण बुरे स्वभाव की न होगी। 
जब भाव को देखा जाए तो भाव पर गुरु और बुध जैसे शुभ ग्रह की दृष्टि है इसलिए जातक की पत्नी धार्मिक व ईश्वर में विश्वास रखने वाली होगी।  साथ ही केतु की भी दृष्टि होने के कारण जातक और पत्नी के बीच मतभेद की स्तिथि हो सकती है।  
यहाँ ध्यान रखने योग्य बात ये भी है की प्रत्येक ग्रह अपनी दृष्टि का प्रभाव अपने दशा या अन्तर्दशा में सबसे अधिक दिखाता है। 
ऊपर इस उदाहरण कुंडली में केतु की दृष्टि के कारण पति पत्नी के बीच अलगाव की स्तिथि हो सकती है परन्तु ऐसा नहीं की ये हमेशा उत्पन्न होगी।  ये मुख्यत तौर पर केतु जब किसी पाप ग्रह की दशा में आएगा या खुद महादशा में आएगा तो अपना प्रभाव दिखायेगा। 
तो अभी तक इस उदाहरण और ब्लॉग से स्पष्ट है की जब भी हमे कुंडली से ये जानना है जातक का पति या पत्नी कैसी होगी तो सप्तम भाव , सप्तमेश की स्तिथि , सप्तम से सप्तम भाव की स्तिथि और कारक ग्रह को देखा जाता है।  याद रहे यदि भाव पर शुभ और अशुभ दोनों प्रभाव है तो परिणाम भी दोनों का ही होगा , परन्तु अधिकता इस बात पर निर्भर करेगी की शुभता अधिक या अशुभता और ग्रह कौन अधिक बली है। 
तो दोस्तों ये था हमारा विवाह कुंडली का तीसरा ब्लॉग अगर आप इससे पहले के दो ब्लोग्स को पढ़ना चाहते है तो नीचे दिए लिंक पर क्लिक करे :
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